खुद नहीं देखोगे तो लोग दिखा देंगे आईना

Thursday, July 10, 2008





बीरबल अपनी पगड़ी इतनी बढ़िया बाँधते थे कि अकबर अकसर तारीफ करते थे। इस बात से दुःखी मुल्ला दो-प्याजा ने ठान लिया कि वे बीरबल से अच्छी पगड़ी बाँधकर दिखाएँगे। इसके लिए उन्होंने अपने घर पर आईने के सामने घंटों पगड़ी बाँधने का अभ्यास किया और एक दिन बहुत ही उम्दा पगड़ी बाँधकर दरबार में पहुँचे। जो भी उनकी पगड़ी देखता, उसकी तारीफ करता। बादशाह से भी न रहा गया।

वे बोले- वाह मुल्ला साहब, आज तो आपने बीरबल को भी मात दे दी। क्यों बीरबल, तुम क्या कहते हो। बीरबल- हुजूर, तारीफ के काबिल मुल्ला साहब नहीं, उनकी बेगम हैं, जिन्होंने ये पगड़ी बाँधी है। इस पर मुल्ला बोले- यह सफेद झूठ है। पगड़ी मैंने खुद बाँधी है।

बीरबल- यदि ऐसा है, तो आप सबके सामने बाँधकर दिखाएँ। तब ताव में आए मुल्ला ने पगड़ी खोलकर बाँधना शुरू कर दिया, लेकिन वह रोज जैसी भी न बँध सकी। दरअसल वे आईने के सामने खड़े होकर ही पगड़ी बाँध सकते थे।
  बीरबल अपनी पगड़ी इतनी बढ़िया बाँधते थे कि अकबर अकसर तारीफ करते थे। इस बात से दुःखी मुल्ला दो-प्याजा ने ठान लिया कि वे बीरबल से अच्छी पगड़ी बाँधकर दिखाएँगे। इसके लिए उन्होंने अपने घर पर आईने के सामने घंटों पगड़ी बाँधने का अभ्यास किया।      


बीरबल ने इसी बात का अंदाजा लगाकर उन्हें उकसाया था, क्योंकि दरबार में आईना तो मिलने से रहा। बेतरतीब पगड़ी देखकर बादशाह ने चुटकी ली- क्यों मियाँ, बेगम के काम की वाहवाही आप लूटते हैं। इस पर सारा दरबार ठहाकों से गूँज उठा। मुल्ला साहब झेंपकर रह गए। क्या करते, बीरबल ने उन्हें आईना जो दिखा दिया था।

दोस्तो, कहते हैं कि इंसान को कोई भी काम करने से पहले आईने में अपना मुँह जरूर देख लेना चाहिए। यानी उसे यह देख लेना चाहिए कि जो काम वह करना चाहता है, उसे कर पाने की उसमें योग्यता या क्षमता है या नहीं, तभी उसे कदम आगे बढ़ाना चाहिए।
बूते के बाहर का काम करने की कोशिश में वह मुल्ला दो-प्याजा की तरह हँसी का पात्र बन जाता है। इसलिए यदि आप कुछ बड़ा करने, कर दिखाने का सपना देख रहे हैं, तो उस दिशा में कदम बढ़ाने से पहले मन रूपी दर्पण में झाँककर देख लें।

कहते हैं दर्पण झूठ नहीं बोलता। वैसे ही मन भी झूठ नहीं बोलता। वह आपको सही-सही बता देगा कि आप कितने पानी में हैं। यदि आप अपने मन रूपी दर्पण की बात को झुठलाने की कोशिश करेंगे तो आपके हिस्से में नाकामियों के सिवाय कुछ नहीं आएगा।

कहावत है कि आँख न दीदा काढ़े कसीदा। अब ऐसे में व्यक्ति ऐसे कसीदे तो काढ़ ही नहीं सकता कि उसकी तारीफ में कसीदे पढ़े जाएँ। तब तो उसकी मूर्खता पर हँसी ही आएगी।

दूसरी ओर, कुछ लोग दूसरों की देखा-देखी उस काम को करने लग जाते हैं, करने की कोशिश करते हैं, जो उनकी कुव्वत से बाहर की बात होती है। उन्हें यह गलतफहमी रहती है कि जब सामने वाला वह काम कर सकता है तो हम क्यों नहीं।

ऐसे व्यक्ति का भला चाहने वालों को एक बार उसे आईना दिखा देना चाहिए यानी उसे बता देना चाहिए कि इस बेकार की होड़ में उसे नाकामी ही मिलेगी। इसके बाद भी अगर वह न समझे तो उसकी किस्मत। दोस्तों का तो यह फर्ज ही होता है कि वे ऐसा करें, तभी तो सच्चे दोस्त की तुलना आईने से की गई है, जो अच्छा-बुरा साफ-साफ कह देता है।

और अंत में, आज 'कॉम्लीमेंट योर मिरर डे' है। वाकई हमें अपने मन के आईने की तारीफ करना चाहिए कि वह हमें हर बात सही-सही बताकर गलत राह और दिशा में जाने से रोकता रहता है। जो लोग इस आईने को साफ रखते हैं उनका व्यक्तित्व भी आईने की तरह एकदम साफ रहता है। लेकिन जिनके मन में मैल होता है, वे अपना भला-बुरा नहीं देख-सोच पाते।

कहते भी हैं सच्चाई तभी नजर आती है जब आईना साफ हो। इसे साफ न रखने वाले ऐसी गलती करते हैं कि वक्त उन्हें माफ नहीं करता। इसके साथ ही यदि आप में आत्मविश्वास की कमी है, अगर आप लोगों के सामने बोलने में झिझकते हैं, तो आईने से बातें करना सीखें। इससे व्यक्तित्व निखरता है।

यकीन मानिए इससे अच्छा दोस्त कोई हो नहीं सकता। लेकिन ऐसा भी न करें कि मुल्ला साहब की तरह आईने के बिना आपका काम ही न चले। इसके लिए आपको मन के आईने से भी बातें करने की प्रेक्टिस करना होगी। तब आप जो सीखेंगे, वह जरूरत पड़ने पर कहीं भी काम आएगा। अरे भई, आज मिरर में देखना भूल गए जो हॉरर मूवी के पात्र नजर आ रहे हो।

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