लापता बंदर

Thursday, July 10, 2008




चिड़ियाघर का चौकीदार जागा,
तो पाया कि अंदर से

एक बंदर निकल भागा।
बंदर था नायाब,
और कीमती बेहिसाब,
इसलिए रिपोर्ट लिखवाई गई पुलिस में,
पुलिस ने भी
काफी दिलचस्पी ली इसमें।
बहुत दिनों चला
खोज का सिलसिला
पर बंदर नहीं मिला, नहीं मिला, नहीं मिला।

फिर एक
अंतरराष्ट्रीय बंदर अन्वेषण आयोग बिठाया गया,
दुनिया भर के पुलिस विशेषज्ञों को बुलाया गया।
अन्य बंदरों से भी पूछा
उनके साथियों से पूछा
तलाश में लग गया
तंत्र समूचा।

आधुनिकतम विधियों से
वैज्ञानिक प्रविधियों से
जमकर खोज हुई,
चौबीसों घंटे हर रोज हुई
पर बंदर फरार का फरार,
विदेशी विशेषज्ञों ने मान ली हार।
दिखा दी लाचारी,
तब इनाम रखा गया भारी।

इंस्पेक्टर बौड़मसिंह आए आगे,
उन्होंने बंदर बरामद करने के लिए
सिर्फ तीन घंटे माँगे।
थानेदार को सैल्यूट मारा,
और कर गए किनारा।
दो घंटे बाद देखा गया कि
इंस्पेक्टर बौड़मसिंह

थाने में एक गधे को
रस्सी पकड़कर
इधर से उधर घसीट रहे थे,
डंडे से लगातार पीट रहे थे।
ऐसा मारा बेभाव,
कि गधे के शरीर पर घाव ही घाव।

थानेदार ने बुलाया और कर दी खिंचाई-
तुम्हें बंदर ढूँढने भेजा था
और तुम कर रहे हो
गधे की धुनाई !
ये कैसा क्रिया-कलाप है,
जानते नहीं हो
निरीह जीवों को सताना पाप है ?
इंस्पेक्टर बौड़म बिलकुल नहीं घबराए,
पसीना पोंछ कर मुस्कराए -
हुजूर,
मैं पुलिस का पुराना धुरंधर हूँ,
सिर्फ आधा घंटे की मोहलत दीजिए
ये गधा अपने मुँह से बोलेगा-बक्कारेगा कि
जी हाँ, मैं ही बंदर हूँ।

ये बात मैंने आपको इसलिए बताई,
क्योंकि दुनिया जानती नहीं है
इंस्पेक्टर बौड़मसिंह की क्षमताई।
कि वे कितने चुस्त हैं
दुरुस्त हैं,
शेष देशों के पुलिस वाले तो
एकदम सुस्त हैं।
इसलिए इंस्पेक्टर बौड़मसिंह के गुण गाएँ,
उनकी यशगाथा हर किसी को सुनाएँ।
बाकी सबको धता दें,
और आपकी जानकारी के लिए
इतना बता दें
कि बंदर अब फिर से
चिड़ियाघर के अंदर कैदी है,
यही तो
पुलिस इंस्पेक्टर बौड़म सिंह की
मुस्तैदी है।

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